Diwali Kab Hai: जानिए दीपावली कब है, पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त व पौराणिक कथा

Diwali Kab Hai

Diwali Kab Hai 2020: दिवाली सबसे मुख्य त्योहारों में से एक है। तो आइये जानते  है की Diwali Kab Hai व किस दिन है। जैसा की आप सब जानते है की Diwali प्रत्येक वर्ष अक्टूम्बर माह में मनाई जाती है। लेकिन इस बार Diwali अक्टूम्बर माह में न मनाकर नवंबर महीने में मनाई जाएगी। और इस बार Diwali देर से मनाए जाने का कारण मलमास है। जो की 16 अक्टूम्बर को समाप्त होगा ।  मलमास की वजह से न सिर्फ Diwali में देरी हो रही है बल्कि इस बार नवरात्री (Navratri) भी देरी से शुरू हो रही है। तो जानते है की  Diwali Kab Hai व किस दिन है?

2020 में Diwali Kab hai व किस दिन है?

इस साल  Diwali 14 नवंबर शनिवार के दिन  है। Diwali को दिपावली (Dipawali) के नाम से भी जाना जाता है।  Diwali  को प्रकाशोत्सव भी कहा जाता है। Diwali सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। Diwali प्रत्येक वर्ष बड़े ही हर्षो-उल्हास के साथ मनाई जाती है।  Diwali दीपो का त्यौहार है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक कार्तिक के 15 वें दिन 'अमावस्या' या अमावस्या के दिन Diwali मनाई जाती है। लेकिन इस वर्ष Diwali 5 दिन की न होकर चार दिन की ही मनाई जाएगी। 14 नवंबर को सुबह रूप चौदस (छोटी दीपावली) व शाम को महालक्ष्मी पूजन के साथ Diwali मनाई जाएगी। इस वर्ष दीपोत्सव 13 नवंबर से शुरू होगा व 16 नवंबर को भाईदूज के साथ इसका समापन हो जाएगा। 

Diwali के दिन भगवान श्री गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। Diwali से पूर्व पूरे घर की अच्छी तरह से सफाई करके उसे सजाया जाता है। Diwali के दिन शाम के वक्त गणेश जी और लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है। पुरे घर व आँगन को दीपों से सजाया जाता है। डीप प्रज्जवलित करके माता लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है।

दीपावली कब है: पौराणिक कथा के अनुसार 

भगवान श्री राम रावण का वध कर व अपने १४ वर्ष के वनवास को पूरा करके अयोध्या लोटे थे। भगवान राम के अयोध्या लौटने की ख़ुशी अयोध्यावासियों ने दीपक जलाए गए थे। अयोध्यावासियों ने दीपक जलाकर भगवान राम का स्वागत किया था।  और उसी  दिन से Diwali का यह त्यौहार मनाया जाने लगा। और तब से यह त्यौहार बड़े ही हर्षो-उल्हास के साथ मनाया जाता है। 

दीपावली कब है: दिवाली का महत्व (Diwali Ka Mahatav 2020)

पुराणों के मुताबिक त्रेतायुग में  श्री राम   रावण का वध करने के पश्चात  अयोध्या लौट रहे थे। तो प्रभु श्री राम  के १४ वर्ष के वनवास पुरे करके अयोध्या वापस लौटने की ख़ुशी में अयोध्यावासियों ने  दीप जलाकर प्रभु श्री राम का स्वागत किया। और तभी से यह  Diwali का यह त्यौहार मनाया जाता है। Diwali भगवान राम के वापस लौटने  का प्रतीक है। भगवान राम विष्णु के सातवें अवतार थे। Diwali कार्तिक के महीने में अमावस्या की पहली रात पर मनाई जाती है।

Diwali के दिन लोग अपने घरो की सफाई करते हैं। अपने घरो को अच्छी  तरह से सजाते है। घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई जाती है। पुरे घर को दीपो से सजाया जाता है। इससे पूरा घर जगमगाने लगता है। Diwali के दिनों में घरो को अच्छी तरह से सजाकर व दीप प्रज्जवलित करके माता लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है। Diwali के दिनों में कई कई प्रकार के व्यंजन बनाएं जाते है। पटाखे जलाकर यह त्यौहार मनाया जाता है। आतिशबाज़ी की जाती है। लक्ष्मी  पूजा के दिन गहनों,पैसों और बहीखातों की भी पूजा की जाती है। Diwali के दिन में उपहार और मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं।

दिवाली पूजा विधि (Diwali Pooja Vidhi 2020)

Diwali  के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना की जाती है। Diwali  के दिन शाम के वक्त स्नान करने के बाद कोरे वस्त्र धारण करे। उसके पश्चात एक चौकी पर गंगाजल छिड़कर  लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। इसके बाद भगवान गणेश, माता लक्ष्मी व कुबेर जी की प्रतिमा स्थापित करके उनके सामने खील और बताशों की ढेरी लगाए। और साथ ही कलश स्थापित करे। कलश पर स्वास्तिक बनाए व पत्ते रखें और नारियल स्थापित करें। इसके पश्चात भगवान गणेश और माता लक्ष्मी  के सामने पंच मेवा, गुड़ फूल , मिठाई,घी , कमल का फूल ,खील और बातसे व पांच कोई भी फल चढ़ाए। फिर भगवान गणेश और माता लक्ष्मी  के सामने घर के पैसों, गहनों और बहीखातों की रखे। उसके पश्चात घी और तेल के दीपक जलाकर विधिवत तरीके से पूजा करे। पूजा करने के पश्चात माता की आरती उतारे व माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करे।  

गहरी - दीप, वली - सरणी के नाम से भी Diwali को जाना जाता है। यह सब नाम दक्षिणी भारत के है। और उत्तरी भारत में इसे दिवाली (Diwali) के रूप में ही जाना जाता है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत, अन्धकार पर प्रकाश का प्रतिक है। Diwali धन सुख-समृद्धि से जुड़ी होती है।दीवाली प्रमुख रूप से हिंदू, सिख व जैन धर्म के लोगो द्वार मनाई जाती है। 


दीपावली कब है: किस ख़ुशी में मनाते है Diwali  

हिन्दू धर्म में  Diwali  भगवाम श्री राम के  14 साल के वनवास पूरा करके  अयोध्या वापस लौटने की ख़ुशी में मनाते है।  प्रकाश और ज्ञान के त्योहार के रूप में Diwali  मनाई जाती है। राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान की वापसी की ख़ुशी में यह त्यौहार मनाया जाता है। जबकि बंगाल में देवी काली की पूजा होती है। 

दीवाली सिख धर्म में 18 वीं शताब्दी के बाद से मनाना शुरू की गयी। इस दिन सिख धर्म के लोग  अपने छठे गुरु  हरगोबिंद की रिहाई का जश्न मनाते हैं। यह दिन वे बांदी छोर दिवस के रूप में मनाते है।  

दीवाली शुभ तिथि और शुभ पूजन मुहूर्त (Diwali shubh Tithi Aur Shubh Poojan Muhurat 2020)

दिवाली की तिथि (Diwali Ki Tithi 2020): 14 नबंवर 2020

अमावस्या तिथि प्रारम्भ (Amavashya Tithi Shuru 2020): 14 नबंवर 2020 दोपहर 2 बजकर 17 मिनट से

अमावस्या तिथि समाप्त (Amavashya Tithi samapt 2020): अगले दिन सुबह 10 बजकर 36 मिनट तक (15 नबंवर 2020)

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त (Lakshmi Pooja Muhurat 2020): शाम 5 बजकर 28 मिनट से शाम 7 बजकर 24 मिनट तक (14 नबंवर 2020)

प्रदोष काल मुहूर्त (Pradosh Kaal Muhurat 2020): शाम 5 बजकर 28 मिनट से रात 8 बजकर 07 मिनट तक

वृषभ काल मुहूर्त (Vrashabh kaal Muhurat 2020): शाम 5 बजकर 28 मिनट से रात 7 बजकर 24 मिनट तक 


(दीपावली कब है) Deepawali Kab Hai:

भारत में Deepawali का त्यौहार शरद ऋतु में प्रतिवर्ष धूमधाम से मनाया जाने वाला त्योहार है. कार्तिक मास की अमावस्या को होने वाला यह त्योहार या तो अक्टूबर महीने में या नवंबर महीने में होता है. सभी त्योहारों में सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण त्योहार कहा जाने वाला Deepawali का त्यौहार भारतवर्ष में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. Deepawali के त्यौहार को दीपों का त्योहार भी कहा जाता है. आध्यात्मिक विचार के अनुसार यह त्यौहार अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाने वाला त्योहार है.

सामाजिक और धार्मिक दोनों विचारों के अनुसार यह त्यौहार विशेष महत्व रखता है. भारतवर्ष में इसे दीपोत्सव भी कहते हैं. भारतवर्ष में केवल हिंदू नहीं बल्कि इसे सीख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं.ऐसा कहा जाता है कि अयोध्या के राजा दशरथ के घर पर स्वयं भगवान विष्णु के अवतार प्रभु श्री राम ने जन्म लिया था. राजा दशरथ की तीन रानियां थी. जिनके नाम कौशल्या, सुमित्रा और केकई थे. इन रानियों में कौशल्या की कोख से जन्म लेने वाले भगवान श्री राम हुए. सुमित्रा के 2 पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न थे. केकई देश की राजकुमारी केकई के एक पुत्र हुआ था जिसका नाम भरत था. जब राजा दशरथ अपने सबसे प्रिय और सबसे बड़े पुत्र श्री राम को राजा बनाना चाहते थे तब मंथरा नाम की दासी ने रानी के कई को बकाया था और कहा था कि तुम्हें जो राजा दशरथ ने दो वर दान दिए थे उन्हें अब मांग लो. तब रानी के कई नहीं पहला वर मांगा था कि राम को वनवास भेजो 14 वर्ष के लिए और दूसरा मेरे पुत्र भरत को राजगद्दी पर दो अर्थात राजा बनाओ.  

भगवान श्री राम पूरी अयोध्या के सबसे प्रिय राजकुमार थे. अयोध्या की जनता भी यही चाहती थी कि अयोध्या का राजा राजकुमार राम जैसा हो. तब भगवान को 14 वर्ष का वनवास मिला था. 14 वर्ष का वनवास बीत जाने के बात जिस दिन भगवान राम अयोध्या लौटे थे उस दिन पूरी अयोध्या में दीपक जलाए गए थे. अयोध्या वासियों ने खुशियां मनाई थी उस दिन से दीपोत्सव के रूप में Deepawali मनाया जा रहा है. इसके अतिरिक्त भी v का और भी महत्व है. Deepawali भारतवर्ष में सबसे बड़ा त्यौहार है 5 दिनों का यह त्योहार होता है. अमावस्या के दिन भगवान श्री राम जब अयोध्या लौटे थे तब यह दिन अमावस्या की तिथि होने के कारण काली रात में था अयोध्या वासियों ने घी के दीपक जला कर इस दिन को पूरा प्रकाशमान कर दिया था. भारतवर्ष में कहा जाता है कि सत्य की हमेशा जीत होती है तथा असत्य और झूठ की हमेशा हार होती है. Deepawali का त्यौहार यह हमें यही सिखाता है. Deepawali का त्यौहार आने के कई दिनों पहले घरों की साफ-सफाई, रंगाई पुताई, तथा अनेक नए सामानों की खरीददारी की जाती है. बाजारों में भी दुकानों की साफ सफाई हो जाती है. बाजार पूरी तरह से नहीं सुसज्जित हो जाते हैं.


दीपावली कब है: हिंदू धर्म में दीपावली का महत्व (Hindu Dhram Me Deepawali Ka Mahatav 2020)

हिंदू धर्म में Deepawali को बहुत महत्व दिया जाता है. रामायण में बताया गया है कि कहीं लोग Deepawali को 14 साल का बनवास बीत जाने के बाद भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे. भगवान श्री राम के स्वागत हेतु उनके सम्मान हेतु यह त्योहार मनाया जाता है. महाभारत जो कि एक प्राचीन हिंदू महाकाव्य है उसने बताया गया है कि पांडवों ने 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास पूरा करने के बाद जब वापस आए थे उनके सम्मान में यह दिन चुना गया था. एक तरफ भगवान विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी की पूजा करने के लिए इस दिन को चुना गया है. उत्सव, धन और समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी की पूजा से सभी सुखी होते हैं. 30 दिन माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता है.देवताओं और राक्षसों द्वारा जिस समय समुद्र मंथन किया गया था उस समय अलौकिक सागर के मंथन से माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था. भगवान विष्णु माता लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में चुनकर जिस दिन से शादी की थी यह वह दिन था जिसे Deepawali के रूप में चुना गया है. माता लक्ष्मी के साथ सभी बाधाओं को दूर करने वाले भगवान गणेश का पूजन भी किया जाता है. संगीत साहित्य की प्रतीक माता सरस्वती का पूजन भी इसी दिन किया जाता है माता लक्ष्मी के साथ. धन का प्रबंधन करने वाले कुबेर भगवान का पूजन भी किया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने वालों को सुख शांति और मानसिक शारीरिक दुख मिट जाते हैं |


दीपावली कब है: आइए आज हम जानते हैं दीपावली से जुड़े विशेष तथ्य जिन्हें धार्मिक और सामाजिक विधि विधान के अनुसार महत्वपूर्ण माना गया है


राजा बलि जोकि बहुत बड़ा दानी हो रही महा प्रतापी राजा हुआ था जिसने पूरे पृथ्वीलोक को जीत लिया था. तीनों लोगों पर विजय प्राप्त करने के बाद जब देवताओं 

ने अपनों को असुरक्षित पाया तो उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की ओर राजा बलि से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से निवेदन किया था. भगवान विष्णु ने राजा बलि से  दान में तीन पग भूमि मांगी थी. तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था. भगवान विष्णु ने तीन पग में तीनों लोगों को नाप लिया. और राजा बलि को पाताल में भेज दिया और वहां का राजा बना दिया. राजा बलि से भगवान ने कहा कि पृथ्वीलोक वासी इस दिन प्रति वर्ष दीपावली के रूप में मनाएंगे.

  1. त्रेता युग के अनुसार भगवान राम के अयोध्या लौटने पर यह दिन दीपावली के रूप में मनाया जाता है.
  2. सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह जी की केद मुक्ति दिवस के कारण यह दिन दीपावली कहां जाता है.
  3. गौतम बुद्ध के स्वागत हेतु बौद्ध धर्म के लोग इस दिन लाखों दीपक जलाते हैं.
  4. गोकुल वासियों ने दीप जलाकर नरकासुर का वध पर दीपावली मनाई थी.
  5. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का कार्य आरंभ हुआ था इस दिन.
  6. विक्रमादित्य का राज्य अभिषेक इस दिन हुआ था इस हेतु यह दिन मनाया जाता है.

इस वर्ष दीपावली 14 नवंबर को होने जा रही है. दीपावली के दिन आतिशबाजी भी की जाती है. दीपक जलाए जाते हैं. 5 दिनों का यह त्यौहार होता है. किसान अपने कृषि यंत्रों को धोकर तैयार कर देते हैं. गांव में गाय की पूजा और बैलों की पूजा की जाती है. जिस दिन गोवर्धन पूजा होती है उस दिन बैलों की पूजा की जाती है. लक्ष्मी पूजन के दिन गाय और बैलों को मेहंदी लगाई जाती है. अगले दिन गाय और बैलों की पूजन की जाती है. गाय और बहनों को भोजन कराया जाता है यहां तक कि दीपावली पर जो मिठाइयां बनाई जाती है मिठाइयों को भी गाय और बैलों को खिलाया जाता है. 5 दिनों का यह त्यौहार धनतेरस से शुरू होता है जो भाई दूज तक चलता है. धनतेरस के दिन कुबेर की पूजा की जाती है. रूप चौदस के दिन दीए जलाए जाते हैं. अमावस के दिन लक्ष्मी पूजन की जाती है. बालिकाओं के सामने रंगोलियां बनाती है. पटाखे फोड़े जाते हैं. आतिशबाजी की जाती है. 

अगले दिन पूजा होती है. पूजा के दिन किसानों की दिवाली होती है. इस दिन कृषक अपने कृषि यंत्र की पूजा करते हैं. कहां जाता है कि धन प्राप्त करना है तो धन के देवता कुबेर को प्रसन्न करना बहुत जरूरी है. धनतेरस के दिन भगवान कुबेर का पूजन करना चाहिए. दीपावली से पहले घरों की साफ-सफाई और रंग रोगन कर लेना चाहिए. साफ स्वच्छ और सुंदर घर में माता लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न होती है. दीपावली पर अनेक सारे पकवान बनाए जाते हैं. भगवान को भोग लगाना चाहिए. विधि-विधान और पूजा मंत्र के साथ पूजा मुहूर्त के समय शुभ मुहूर्त के साथ माता लक्ष्मी की पूजा भगवान गणेश और माता सरस्वती के साथ करना चाहिए. धनतेरस के दिन पूजा विधि और शुभ मुहूर्त पर धन के देवता कुबेर का पूजन करना चाहिए. दीपावली पर खरीदारी करते समय विशेष ध्यान रखना चाहिए अनावश्यक खर्च से बचने के साथ ही आवश्यक वस्तुओं की ही करना चाहिए. गोवर्धन पूजा हेतु शुभ मुहूर्त और गोवर्धन पूजा कथा का श्रवण करना चाहिए. भाई दूज का त्यौहार भाई बहन के प्यार का पर्व है.

  इस वर्ष दीपावली 14 नवंबर को है जबकि 2021 में दीपावली 4 नवंबर को होने वाली है तथा 2022 में दीपावली 24 अक्टूबर को होने वाली है. 5 दिनों तक चलने वाला यह त्यौहार तीसरे दिन विशेष हो जाता है. अयोध्या में राजा राम के आने का यह दिन अमावस के दिन होता है. भगवान राम लंका के राजा रावण का वध करने के बाद अपनी पत्नी सीता को लंका से वापस ले आते हैं उसके बाद अयोध्या लौटते हैं. इस दिन को दीपक जलाकर अयोध्या में खुशियां मनाई जाती है. दक्षिण भारत में यह त्यौहार नरकासुर की भगवान श्री कृष्ण के द्वारा की जाती है और नरकासुर का आतंक खत्म हो जाता है इस हेतु मनाया जाता है. केरल में यह त्यौहार माता लक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व रखता है. इस वर्ष 12 नवंबर को धनतेरस के दिन से शुरू होने वाला है 5 दिनों का त्यौहार शुरू हो रहा है. इस दिन धन के देवता कुबेर का पूजन किया जाएगा. इस वर्ष नरक चौदस और धनतेरस एक ही दिन है. 

तीसरा दिन दीपावली का महालक्ष्मी पूजन 14 नवंबर को है. माता लक्ष्मी का पूजन 14 नवंबर को किया जाना है. दीपावली का मुख्य दिन होगा. चौथा दिन 15 नवंबर को गोवर्धन पूजा, बलिप्रतिपदा बली पद्यमी के रूप में मनाया जाता जाएगा. 16 नवंबर को भाई दूज के रूप में रक्षाबंधन के समान भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक यह दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाएगा.


दीपावली कब है:  आइए जानते हैं दीपावली के अलग-अलग जिलों का महत्व

धनतेरस के दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए यह जानना बहुत आवश्यक हो जाता है. धनतेरस के दिन आवश्यक नहीं है कि अब सोने चांदी आभूषण ही खरीदें क्योंकि यदि आपके पास इतना बजट नहीं है कि आप अधिकतम खर्च कर सके और खेल सके उस दिन आपको सोने चांदी का कोई भी छोटा आइटम खरीद लेना चाहिए.

वैसे इस दिन चांदी खरीदने का विशेष महत्व है क्योंकि धन के देवता तो फिर को चांदी अति प्रिय है. चांदी खरीदने से यश कीर्ति और ऐश्वर्य में बढ़ोतरी होती है. चांदी चंद्रमा का रूप है जो मनुष्य को शीतल करता है.

चांदी और पीतल भगवान धन्वंतरि की मुख्य धातु है. ऐसे में धातु का बर्तन खरीदना शुभ माना जा रहा है. इस दिन लोहे का सामान ना तो खरीदना चाहिए और ना ही किसी को गिफ्ट में देना चाहिए. नकारात्मक प्रभाव के साथ ही अशुभ माना जाता है.

कांच का दान नहीं करना चाहिए क्योंकि कांच का संबंध राहु से बताया गया है. राहु एक नीच ग्रह होता है. अतः कांच का दान ना करें. 

धनतेरस का दिन शुभ दिन होता है काले रंग की वस्तु भी दान नहीं देना चाहिए. माता लक्ष्मी जी रुष्ट हो जाती है जो कि अशुभ होता है.

नरक चौदस, रूप चौदस तथा छोटी दीवाली

लक्ष्मी पूजन और दीपावली के 1 दिन पूर्व नरक चतुर्थी होती है जिसे छोटी दीवाली भी कहा जाता है. पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध कर दिया था. युवराज को प्रसन्न करने के लिए यमराज की पूजा इसी दिन होती है.

शास्त्रों के अनुसार माता लक्ष्मी का वास स्वच्छ और पवित्र जगह पर होता है. इस दिन घर में साफ सफाई और स्वच्छता का विशेष काम कर लेना चाहिए. जिससे माता प्रसन्न होती है.

दीपावली पर सभी तरह की स्वच्छता और रंग रोगन साफ सफाई करने के साथ ही घरों को सजा देना चाहिए. नरक चौदस के दिन तिल के तेल के 14 दीपक लगाना चाहिए. तिल के तेल के 14 दीपक को जलाने का विशेष महत्व है.

 घर में किसी भी प्रकार का टूटा फूटा सामान नहीं रखना चाहिए. इस दिन साफ सफाई कर सा टूटा पूरा सामान घर से बाहर कर देना चाहिए. टूटा फूटा सामान नरक का प्रतीक माना गया है. अतः यह सामान अशुभ होता है. कचरा और गंदगी पूरी तरह से साफ साफ कर लेना चाहिए.

नीले और पीले रंग के वस्त्र पहनकर चार पत्ती वाला मिट्टी का दीपक पूर्व दिशा में अपना मुख रखा कर घर के मुख्य द्वार पर रख देना चाहिए. यम की पूजा करना चाहिए.


दीपावली कब है: इस वर्ष लक्ष्मी पूजन पर क्या करना है और कब करना है

दीपावली 2020 भारत देश में कार्तिक मास की अमावस्या को महालक्ष्मी पूजन किया जाना है. धनतेरस, नरक चतुर्थी, छोटी दीवाली त्योहारों के बाद अगले दिन दीपावली का त्यौहार होता है. दीपावली के अगले ही दिन गोवर्धन पूजा, अन्नकूट, और गोवर्धन पूजा के अगले दिन भाई दूज का त्यौहार होता है. हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा त्यौहार दिवाली भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में मनाया जाना है. कार्तिक मास की अमावस्या इस वर्ष 14 नवंबर को मनाई जाएगी. 14 नवंबर को महालक्ष्मी पूजन होगा. महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन को अत्यंत शुभ कार्य माना गया है. इस दिन उपवास रखना चाहिए ताकि घर में सुख समृद्धि बनी रहे और माता लक्ष्मी स्थिर रूप से घर में विराजमान रहे. सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल की अवधि में स्थिर लग्न के समय माता लक्ष्मी की पूजा की जाना चाहिए.

  दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा 2020

 महालक्ष्मी पूजन के अगले ही दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का पर्व हिंदू धर्म में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. अन्नकूट के नाम से जाना जाने वाला यह त्यौहार होता है. पुराणों में भी इस त्योहार का महत्व है. इस त्यौहार पर प्रकृति एवं मानव का सीधा संबंध बताया गया है. इस त्यौहार पर गौमाता और बैलों की पूजा हिंदू धर्म में की जाती है. मां गंगा का निर्मल जल जितना पवित्र होता है उतनी ही पवित्र गौ माता को कहा गया है. वैसे तो महालक्ष्मी पूजन के अगले ही दिन गोवर्धन पूजा का पर्व होता है मगर कभी कबार गोवर्धन पूजा और महालक्ष्मी पर्व के बीच 1 दिन का अंतराल आ जाता है.

 आइए हम जानते हैं गोवर्धन पूजा करने की विधि

 बताया गया है कि द्वापर युग की बात है बृजवासी इंद्र देवता का पूजन कर रहे थे. जब वहां भगवान श्री कृष्ण का आगमन होता है और उनका ब्रज वासियों से यह पूछा जाता है कि यह आप लोग किस का पूजन कर रहे हैं. ब्रज वासियों द्वारा भगवान श्री कृष्ण को बताया जाता है कि इंद्र देव की पूजा की जा रही है. इसके जवाब में भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि इंद्र देवता का तो दायित्व है की वर्षा करें. उनका पूजन करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि गोवर्धन पर्वत हमारे को गोधन का संवर्धन और संरक्षण करते आ रहे हैं. पर्यावरण शुद्ध करने का काम भी गोवर्धन पर्वत द्वारा किया जाता है. इस कारण इंद्रदेव कि नहीं बल्कि गोवर्धन की पूजा की जाना उचित है. उस दिन से सभी लोग गोवर्धन पूजा करने लगे. इस बात को लेकर इंद्रदेव गुस्सा हुए और वहां पर उन्होंने भारी बारिश करने के लिए मेघों को आदेश दे दिया. यह सब देख कर बृजवासी भयभीत हो गए. जब यह घटना हुई तो भगवान श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठाका उंगली गोवर्धन पर्वत को धारण कर लिया और सभी लोगों की रक्षा की. जिसमें गाय और पूरा जनमानस शामिल था. जब इंद्र देवता को यह ज्ञात हुआ कि श्री कृष्ण भगवान विष्णु का अवतार है इस घटना के कारण इंद्रदेव बहुत लज्जित हुए. उस दिन से आज तक गोवर्धन पूजा बड़े श्रद्धा और हर्षोल्लास से मनाया जाता रहा है.

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